1939 में दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ गया। आरम्भ में जर्मनी का पल्ला भारी था। युद्ध में जापानी फौजें बढ़ती चली जा रही थी। भारत जापानी आक्रमण से बच न सका। कलकत्ता पर बम फर्क गए और ब्रिटिश साम्राज्य के भी कदम लड़खड़ाने लगे।महात्मा गांधी ने सोचा कि यदि अंग्रेज़ इस समय भारत छोड़ जाएं तो यह जापानियों के हमले से बच जायेगा। इसलिए उन्होंने “भारत छोड़ो' आंदोलन प्रारम्भ किया।
8 अगस्त, 1942 को कांग्रेस के अधिवेशन में"भारत छोड़ो' का प्रस्ताव पास किया गया और अंग्रेज़ सरकार से कहा गया कि वह शीघ्र से शीघ्र भारत छोड़ दें क्योंकि देश का लाभ इसी में है। अघिवेिशन में महात्मा गांधी को इस बात का अधिकार दिया गया कि वे देश में असहयोग आंदोलन आरम्भ कर सकते हैं। और आंदोलन आरम्भ करने से पूर्व वायसराय को एक पत्र लिखें और उनके उत्तर की प्रतीक्षा करें। इससे पूर्व कि गांधी जी पत्र लिखें, सरकार ने इस आंदोलन को दबाने के लिए दमनकारी कार्यवाही शुरू कर दी। उसी समय गांधी जी ने देशवासियों से “करो या मरो'' मंत्र का आहान किया। 9 अगस्त की सुबह बड़े-बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए। ब्रिटिश सरकार ने सर स्टेफर्ड क्रीप्स (Sir Stephed Crips) को कांग्रेस से समझौता करने के लिए भेजा। किन्तु उसका कोई विशेष परिणाम नहीं निकला। मध्य अगस्त में यह आंदोलन भारत के प्रान्तों, बिहार, उत्तर प्रदेश,महाराष्ट्र, बंगाल और आसाम तक फैल गया। अंग्रेजों ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए दमनकारी तरीके अपनाये। जवाहर लाल नेहरू के अनुसार साठ हजार आदमी गिरफ्तार किए गए। दस हज़ार आदमियों को मार डाला गया।
दिल्ली में भारत छोड़ो आन्दोलन
जुगल किशोर खन्ना सचिव दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है:8 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के समय दिल्ली में पुलिस और फौज ने 12 बार गोलियाँ चलाई जिससे 150 लोग मारे गए। 2000 लोगों को जिसमें अधिकतर महिलाएं थीं, अलग-अलग अपराधों में गिरफ्तार किया गया या बिना मुकदमा चलाये नज़रबंद कर दिया गया।
प्रस्तुति : एस ए बेताब संपादक "बेताब समाचार एक्सप्रेस"