हिंदू मुस्लिम को एक गिलास से पानी पिला देने वाले डाक्टर सैफुद्दीन किचलू को सरकारों ने क्यों भुला दिया ?
सैफुद्दीन किचलू (15 जनवरी 1888 - 9 अक्टूबर 1963) एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता, बैरिस्टर, राजनीतिज्ञ और बाद में शांति आंदोलन के नेता थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक सदस्य, वह पहले पंजाब प्रांतीय कांग्रेस कमेटी (पंजाब पीसीसी) के प्रमुख बने और बाद में 1924 में एआईसीसी महासचिव बने। उन्हें पंजाब में रॉलेट एक्ट के लागू होने के बाद विरोध प्रदर्शनों के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है। मार्च 1919। वह जामिया मिलिया इस्लामिया के संस्थापक सदस्य भी थे। 1952 में उन्हें स्टालिन शांति पुरस्कार (अब लेनिन शांति पुरस्कार के रूप में जाना जाता है) से सम्मानित किया गया।
डाक्टर सैफुद्दीन किचलू को सरकारों ने क्यों भुला दिया ?
सैफुद्दीन किचलू अमृतसर के एक ऊनी कपड़े एवं जाफरान के व्यापारी ख्वाजा अजीजुदीन के पुत्र थे। उनका जन्म जनवरी 1888 में हुआ। मैट्रीकुलेशन पास करने के बाद 1907 में “एफ.ए.'' किया। उन्होंने 1912 में जर्मनी से दर्शनशास्त्र में पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की। प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद भारतीय नेताओं ने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की, तो इंग्लैंड की ओर से कठोरता का व्यवहार प्रारम्भ हुआ। लेख एवं भाषणों पर पाबंदी लगाने के लिए रौलट एक्ट पास किया गया। इसके विरोध में आवाज उठाने के लिए 30 मार्च 1919 को जलियाँवाला बाग अमृतसर में एक सम्मेलन हुआ। डाक्टर सैफुद्दीन किचलू ने उत्साहपूर्ण भाषण दिया। 4 अप्रैल 1919 को पंजाब सरकार ने डिफेंस आफ इंडिया एक्ट के अनुसार सभाओं में भाषण करने पर पाबंदी लगा दी। 6 अप्रैल को रौलट एक्ट के विरोध में देशव्यापी हड़ताल हुई। 19 अप्रैल को रामनौमी का जुलूस अमृतसर में निकला, तो उसमें मुसलमानों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इसे डाक्टर किचलू के व्यक्तित्व का चमत्कार कहिए कि हिन्दू मुसलमान दोनों ने एक ही गिलास में पानी पिया। 10 अप्रैल को पंजाब के गवर्नर ने उन्हें और डाक्टर सत्यपाल को सलाह मशवरे के लिए अपनी कोठी पर आमंत्रित किया और जब ये लोग तमाम पहुँचे तो उनको गिरफ्तार कर के फौजी गाड़ी में बिठाकर धर्मशाला में नजरबंद कर दिया। इन लोगों की गिरफ्तारी पर आवाज उठाने के लिए सभा हुई। 13 अप्रैल को यह सभा जालियाँवाला बाग में हुई, जिसमें बीस हजार हिन्दू-मुसलमान और सिख सम्मिलित थे। गवर्नर पंजाब के आदेश पर जनरल डायर 150 सिपाहियों के साथ वहां आ पहुँचा और पहुंचकर अंधाधुंध गोलियाँ चलाना प्रारम्भ कर दीया, जिसमें तीन सौ पच्चहतर 375 व्यक्तियों की जान गई और एक हजार दो सौ 1200 जख्मी हुए। जालियाँवाला बाग की दुर्घटना का विवरण “जालियाँवाला बाग'' के शीर्षक से वर्णित है।
डाक्टर किचलू को अमृतसर षडयंत्र केस का मुख्य आरोपी ठहरा कर उम्र कैद की सजा सुनाई गई। इस फैसले के विरोध में लंदन प्रिवी कांउसिल में अपील की गई, और प्रशासन ने आम राय के तनाव के कारण डाक्टर किचलू की रिहाई के आदेश दे दिए। सन् 1946 भारत के इतिहास में एक भयानक वर्ष था। मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान को प्राप्त करने के लिए डाइरेक्ट एक्शन का ऐलान कर दिया। मार्च 1947 में स्थिति अधिक बिगड़ गई। जगह-जगह सांप्रदायिक दंगे होने लगे। डाक्टर किचलू एक हिन्दू अमीर जमीनदार कल्याण दास का मुकद्दमा लड़ने के लिए गए थे। वहाँ एक भीड़ ने कल्याण दास की हत्या करने के बाद डाक्टर किचलू पर आक्रमण करके घायल कर दिया, और उन्हें घसीट कर ले गए, और एक कागज पर हस्ताक्षर करने को कहा जिस पर लिखा था कि मैं काँग्रेस त्याग करके मुस्लिम लीग में सम्मिलित हो रहा हूँ। इनकार करने पर उन्हें मार-पीट करके बेहोशी की हालत में छोड़ दिया गया, जहां से उनका भतीजा हनीफ किचलू, जो डोगरा रेजीमेंट में लेफ्टिनेंट कर्नल था, इन्हें मिलिट्री अस्पताल में ले गया। कुछ दिनों के बाद अस्थायी हुकूमत के रक्षामंत्री बलदेव सिंह की सहायता से उन्हें अमृतसर पहुँचाया गया। देश के बटवारे के बाद अमृतसर छोड़ कर दिल्ली आना पड़ा। दिल्ली का वातावरण खराब हुआ तो उन्हें दिल्ली को भी छोड़ना पड़ा। वे श्रीनगर चले गये। बैरिस्टर की हैसियत से उन्होंने दिल्ली और मेरठ में चलाए जाने वाले भारतीयों के विरुद्ध षड्यंत्र केसों की पैरवी की थी। खिलाफत आंदोलन के भी आप नेता थे। आल इंडिया अमन कमेटी के अध्यक्ष और विश्व अमन कमेटी के उपाध्यक्ष थे। दुख की बात है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद डाक्टर किचलू जैसे महान और नि स्वार्थ बुद्धिजीवी और त्यागी नेता की सेवाओं से लाभ नहीं उठाया गया। 9 अक्टूबर, 1963 को असहाय स्थिति में उनकी मृत्यु हो गई।