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सूबे की कुल 143 सीटों पर मुस्लिम अपना असर रखते हैं. इनमें से 70 सीटों पर मुस्लिम आबादी बीस से तीस फीसद के बीच है जबकि 73 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमान तीस फीसद से ज्यादा हैं. सूबे की करीब तीन दर्जन ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां मुस्लिम उम्मीदवार अपने दम पर जीत दर्ज कर सकते हैं

ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी यूपी में अपना सियासी आधार बढ़ाने के लिए 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. ओवैसी की नजर भले ही सूबे की मुस्लिम बहुल सीटों पर है, लेकिन पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से लेकर सीएम योगी के गढ़ गोरखपुर तक में चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है.  उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. हैदराबाद से सांसद व ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी यूपी में अपना सियासी आधार बढ़ाने के लिए 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. ओवैसी की नजर भले ही सूबे की मुस्लिम बहुल सीटों पर है, लेकिन पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से लेकर सीएम योगी के गढ़ गोरखपुर तक में चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है.  



बता दें कि उत्तर प्रदेश में करीब 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं और सूबे की कुल 143 सीटों पर मुस्लिम अपना असर रखते हैं. इनमें से 70 सीटों पर मुस्लिम आबादी बीस से तीस फीसद के बीच है जबकि 73 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमान तीस फीसद से ज्यादा हैं. सूबे की करीब तीन दर्जन ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां मुस्लिम उम्मीदवार अपने दम पर जीत दर्ज कर सकते हैं और करीब 107 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक मतदाता चुनावी नतीजों को प्रभावित करते हैं. सूबे की इन्हीं सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी की खास नजर है, जहां से चुनावी मैदान में कैंडिडेट उतारने की तैयारी है. AIMIM के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली ने aajtak.in से बताया 2022 में पार्टी ने सूबे की जिन 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है, उन्हें चिन्हित कर लिया गया है. यूपी की 75 जिले में से 55 जिलों की सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी है, जिनमें से ज्यादातर सीट पश्चिम यूपी की है. इसीलिए पश्चिम यूपी में हम अपने 60 फीसदी कैंडिडेट उतारेंगे और पूर्वांचल में 30 फीसदी होंगे जबकि सेंट्रल यूपी में हम 10 से 15 सीटें का टारगेट लेकर चल रहे हैं, जिनमें कानपुर, लखनऊ, सीतापुर और सुल्तानपुर जिले की सीटें शामिल हैं. 

उन्होंने बताया कि पश्चिम यूपी के बरेली, पीलीभीत, रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, अमरोहा, मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, संभल, बुलंदशहर, फिरोजाबाद, आगरा और अलीगढ़ जिले की विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए चयन किया गया है. ऐसे ही पूर्वांचल में गोरखपुर, श्रावस्ती, जौनपुर, बस्ती, गाजीपुर, आजमगढ़, वाराणसी, बहराइच, बलरामपुर, संतकबीरनगर, गोंडा, प्रयागराज और प्रतापगढ़ जिले की सीटों को चिन्हित किया गया है. पिछले एक सप्ताह में पचास से ज्यादा लोगों ने चुनाव लड़ने का आवेदन किया है. हर एक सीट पर तीन से चार संभावित नाम आए है और हम सिंतबर-अक्टूबर तक अपने सभी प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर देंगे. असदुद्दीन ओवैसी ने यूपी में जिन विधानसभा चुनाव पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है, उन पर मुस्लिम वोटरों की संख्या 35 से 45 फीसदी तक है. इतना ही नहीं इन सीटों पर मुस्लिम मतों के सहारे अभी तक सपा, बसपा और कांग्रेस के विधायक ही जीत दर्ज करते रहे हैं. ऐसे में ओवैसी के इन सीटों के चुनावी मैदान में उतरने से सपा, बसपा और कांग्रेस के लिए नई चुनौती खड़ी हो सकती है. 

ओवैसी क्या सपा-बसपा की बढ़ाएंगे चुनौती

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यूपी में ओवैसी की निशाने पर शुरू से ही सपा, बसपा और कांग्रेस रही हैं. इसके जरिए दोनों पार्टियों को मिलने वाले मुस्लिम वोटों को झटकना है. यूपी की मौजूदा सियासत में सूबे में सपा, बसपा, कांग्रेस और मुस्लिम वोटों की सियासत करने वाले राजनीतिक दलों से मुसलमान मायूस हैं और भरोसेमंद विकल्पों की तलाश में हैं. ऐसे में औवैसी मुस्लिम को एक विकल्प देने के लिए ओम प्रकाश राजभर और कुछ छोटे दलों के साथ मिलकर भागेदारी संकल्प मोर्चा बनाया है. 

बता दें कि मौजूदा विधानसभा में अब तक के सबसे कम सिर्फ 24 मुस्लिम विधायक हैं. मुस्लिम विधायकों की यह हिस्सेदारी 6 फीसदी से भी कम है जबकि सूबे में मुसलमानों की आबादी 20 फीसदी है. इस लिहाज से 403 सदस्यों वाली विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या 75 होनी चाहिए. आजादी के बाद से यह अब तक कम आंकड़ा है. ऐसे में  ओवैसी की पार्टी 2022 के विधानसभा चुनाव में मुसलमानों की नुमाइंदगी एक बड़ा मुद्दा भी बना रही है. शौकत अली कहते हैं कि सपा और बसपा सिर्फ मुस्लिमों का वोट लेना जानती है, लेकिन प्रतिनिधित्व नहीं देना चाहती है. मुस्लिमों की कहां कितना भागेदारी

मुरादाबाद में 50.80 फीसदी, रामपुर में 50.57 फीसदी, सहारनपुर में 41.97 फीसदी,  मुजफ्फरनगर में 41.11 फीसदी, शामली में 41.73 फीसदी, अमरोहा में 40.78 फीसदी, बागपत में 27.98 फीसदी, हापुड़ में 32.39 फीसदी, मेरठ में 34.43 फीसदी, संभल में 32.88 फीसदी, बहराइच में 33.53 फीसदी, बलरामपुर में 37.51 फीसदी, बरेली में 34.54 फीसदी, बिजनौर में 43.04 फीसदी और अलीगढ़ में 19.85 फीसदी आबादी मुस्लिम है. इन जिलों में उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला बहुत हद तक मुस्लिम मतदाताओं के ही हाथ में होता है. 

वहीं, अन्य जिलों जैसे अमेठी में 20.06 फीसदी, गोंडा में 19.76 फीसदी, लखीमपुर खीरी में 20.08 फीसदी, लखनऊ में 21.46 फीसदी, मुऊ में 19.46 फीसदी, महाराजगंज में 17.46 फीसदी, पीलीभीत 24.11 फीसदी, संत कबीर नगर में 23.58 फीसदी, श्रावस्ती में 30.79 फीसदी, सिद्धार्थनगर में 29.23 फीसदी, सीतापुर में 19.93 फीसदी और वाराणसी में 14.88 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है. इसके अलावा अन्य जिलों में यह आबादी 10 से 15 फीसदी के बीच है।साभार: आज तक 

कुबूल अहमद

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