बचपन में मैंने एक कहावत सुनी थी कि जो चमकेगा, वह हर जगह चमकेगा। दुर्भाग्य से यह कहावत मौजूदा शिक्षा व्यवस्था से तालमेल नहीं बिठा पा रही है। व्यवस्था की खामियों और सरकारी ढील के चलते सीबीएसई बोर्ड की दसवीं और बारहवीं परीक्षाओं के लीक प्रश्न पत्रों ने अनेक ऐसे छात्रों को चमकने का अवसर दे दिया था, जिन्होंने परीक्षा के लिए उचित मेहनत नहीं की थी। हालांकि सीबीएसई ने समय रहते अपनी गलती मान ली है और उसके दोबारा परीक्षा कराने के फैसले ने लाखों छात्रों के साथ अन्याय होने की आशंका काफी हद तक खत्म कर दी है।बोर्ड का दोबारा परीक्षा कराने का निर्णय बिल्कुल सही है, क्योंकि हमारे पास फौरी तौर पर इससे बेहतर विकल्प नहीं है। मैं समझता हूं कि लोग बोर्ड के इस फैसले के खिलाफ अतार्किक प्रदर्शन कर रहे हैं। यह सही है कि किसी भी छात्र के लिए दोबारा परीक्षा देना अप्रिय विषय हो सकता है, लेकिन उन्हें देश हित के पहलू को भी ध्यान रखना चाहिए। उनकी छोटी-सी कसरत देश की शिक्षा व्यवस्था की सेहत सुधारने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकती है। यह समझने की बात है कि ये प्रदर्शन जितनी मुखरता के साथ दिल्ली में हो रहे हैं, देश के दक्षिणी हिस्से में ऐसा नहीं है। मतलब अधिकतर देशवासी कुछ उच्चवर्गीय अभिभावकों के मुकाबले अपनी अलग राय रखते हैं।ऐसी अप्रिय स्थिति दोबारा न आए, इसके लिए सरकार को देश की शिक्षा व्यवस्था में कुछ जरूरी बदलाव करने होंगे। वैसे तो संविधान के मुताबिक, शिक्षा व्यवस्था राज्य सरकार के अधीन होती है, लेकिन साठ के दशक में जब सीबीएसई का गठन किया गया, तो उम्मीद यही की गई कि देश में एक समान पाठ्यक्रम के जरिये एक ही स्तर की पढ़ाई की व्यवस्था की जाए। दिक्कतें यहीं से शुरू हुईं। किसी संघीय ढांचे वाले राष्ट्र में शिक्षा व्यवस्था जितना संभव हो, विकेंद्रित और सामूहिक जिम्मेदारी वाली बनाई जाए। सीबीएसई को खत्म न भी किया जाए, तो कम से कम इसकी परीक्षाओं को विभिन्न राज्यों में अलग-अलग प्रश्नपत्रों के सेटों में बांट दिया जाए। स्थानीय प्रशासन की भागीदारी का बड़ा फायदा यह होगा कि इससे बोर्ड पर मौजूदा अधिभार कम किया जा सकेगा।
लेकिन इस मर्ज का इलाज यहीं खत्म नहीं होता। पिछले वर्षों में देश की शिक्षा व्यवस्था जिस तेजी से निजी हाथों में आई है, वह बहुत घातक है। अपवाद स्वरूप अमेरिका को छोड़ दिया जाए, तो पूर्वी एशिया या यूरोप में कहीं भी शिक्षा इस तरह से सरकारी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं है। स्वास्थ्य और शिक्षा किसी भी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। मौजूदा पेपर लीक प्रकरण का एकमात्र सकारात्मक पहलू यह है कि सरकार और बोर्ड सचेत हो गए हैं। सरकार को अविलंब एक कमिटी का गठन करना चाहिए, जिसमें सिविल सोसाइटी के सदस्यों समेत सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि और अकादमिक व्यक्तियों को जगह मिले। शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए इनके सुझावों पर तत्काल अमल भी हो।
निस्संदेह बिना किसी भीतरी संपर्क के इस तरह से पेपर लीक नहीं किए जा सकते। दोषियों की जल्द से जल्द पहचान कर उन्हें कड़ी सजा मिले, जिससे देश के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षा बोर्ड पर लोगों का भरोसा फिर से बहाल किया जा सके। एक संतुलित समाज के निर्माण के लिए जरूरी है कि समाज के प्रत्येक हिस्से को विकास का एक समान अवसर मिले। उम्मीद की जानी चाहिए कि मौजूदा प्रकरण के बाद दोबारा कोई प्रश्नपत्र परीक्षा से पहले व्हॉट्सऐप पर नहीं घूमेगा।
◆ अगस्त 2017 : सब इंस्पेक्टर पेपर लीक
◆ फरवरी 2018 UPPCL पेपर लीक
◆ अप्रैल 2018 UP पुलिस का पेपर लीक
◆ जुलाई 2018 अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड का पेपर लीक
◆ अगस्त 2018 स्वास्थ्य विभाग प्रोन्नत पेपर लीक
◆ सितंबर 2018 नलकूप आपरेटर पेपर लीक
◆ 41520 सिपाही भर्ती पेपर लीक
◆ जुलाई 2020, 69000 शिक्षक भर्ती पेपर लीक
◆अगस्त 2021 बी०एड० प्रवेश परीक्षा पेपर लीक
◆ अगस्त 2021 PET पेपर लीक
◆ अक्टूबर 2021 सहायता प्राप्त स्कूल शिक्षक/प्रधानाचार्य पेपर लीक
◆ अगस्त 2021 UP TGT पेपर लीक
◆ NEET पेपर लीक
◆ NDA पेपर लीक
◆ SSC पेपर लीक
और आज
◆ 28 नवंबर UPTET पेपर लीक
रोजगार ,,परीक्षा की तैयारी करने वाले नौजवानों को नहीं,सरकार नकल माफियाओं को दे रही हैं BJP उसके मुख्य मंत्री उप-मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ( माध्यमिक शिक्षा-मंत्री और बेसिक शिक्षा-मंत्री ) जी.... क्या हकीकत है और किसकी साजिश षडयंत्र है किसकी ज़िम्मेदारी जवाबदेही है ? सरकारी व्यवस्था पुरी तरह अराजक है भ्रष्टाचार की गंगा में विधि व्यवस्था कानून व्यवस्था खत्म है परीक्षार्थी शिक्षित बेरोजगारों में घोर निराशा है लगातार परीक्षा पेपर लीक करने की सरकारी योजना प्रदेश सरकार की मनमानी अराजकता भ्रष्टाचार व युवाओं का भविष्य तबाह बर्बाद करने की साजिश के प्रमाण के लिए काफी है?