पटना। बिहार विधानसभा में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के 2010 के प्रारूप में लागू कराने और जाति आधारित जनगणना के लिए विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गृह मंत्री अमित शाह के सामने बिहार के लिए विशेष दर्जे की मांग कर इस चुनावी साल में जहां अपना दांव खेला है, वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से उनकी दूरी के भी कयास लगाए जाने लगे हैं।
भाजपा के बड़े नेताओं ने जदयू और लोजपा के गठबंधन के साथ इस साल अक्टूबर-नवंबर में होने वाले संभावित चुनाव को लेकर जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व की घोषणा कर दी है, वहीं जदयू के ऐसे निर्णयों से भाजपा बैकफुट पर खड़ी नजर आ रही है। भाजपा के कद्दावर रणनीतिकार समझे जाने वाले नेताओं के इन मुद्दों को लेकर विधानसभा में सहमति के बाद अभी भी वे सीधे तौर पर इन प्रस्तावों की मंजूरी की खिलाफ कुछ बोल नहीं पा रहे हैं।
वैसे भाजपा के कई नेता नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर इतना जरूर कहते हैं कि जदयू ने इस रणनीति से केंद्र सरकार और भाजपा नेतृत्व को चुनौती दी है। वैसे, भाजपा के नेता यह भी कहते हैं कि बिहार की राजनीति तीन ध्रुवों भाजपा, राजद और जदयू पर टिकी है, ऐसे में जो भी दो ध्रुव साथ रहते हैं, सत्ता उसके पास रहेगी। ऐसे में भाजपा के रणनीतिकारों ने विरोध करने वाले उन नेताओं को यह आईना भी दिखाया है कि अभी एकला चलो की स्थिति नहीं है।
भाजपा पिछले चुनाव में जदयू के बिना चुनाव में उतरकर देख चुकी है। इधर, सूत्र यह भी कहते हैं कि जदयू भाजपा पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रही है। जदयू प्रारंभ से ही बिहार में बड़े भाई की भूमिका चाहती रही है। इस बीच लोकसभा चुनाव में बराबर सीटों के बंटवारे के बाद इस विधानसभा चुनाव में भाजपा से ज्यादा सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारना चाहती है।
वैसे, जदयू के नेता भाजपा के विरोध में जाने की बात को सिरे से नकारते हैं। जदयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी कहते हैं कि सीएए के मामले में जदयू साथ है। त्यागी ने कहा कि सीएए का हम लोगों ने समर्थन किया और एनपीआर और एनआरसी पर भी भााजपा के केंद्रीय नेतृत्व से कोई मतभेद नहीं हैं। इस मामले को चुनाव से जोडक़र नहीं देखा जा सकता है।