कर्ज में डूब चुकी सरकारी विमानन कंपनी Air India को दो साल में दूसरी बार सरकार बेचने की कोशिश कर रही है। गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में बने एक मंत्री समूह ने 7 जनवरी को Air India के निजीकरण से जुड़े प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, जिसके लिए बोली लगाने के लिए सरकार ने 17 मार्च तक का समय दिया है। साल 1932 में जेआरडी टाटा ने Air India की शुरुआत की थी, जो 1953 में राष्ट्रीयकरण के बाद सरकारी कंपनी बन गई थी। अब 67 साल बाद सरकार Air India में अपनी 100 फीसद हिस्सेदारी बेचकर इसे फिर से निजी हाथों में सौंपना चाहती है।Air India पर 80 हजार करोड़ रुपए का बकाया है। मगर, शर्तों के मुताबिक खरीदार को एयर इंडिया के सिर्फ 23,286.5 करोड़ रुपए के कर्ज की जिम्मेदारी लेनी होगी। इससे पहले साल 2018 में मोदी सरकार एयर इंडिया में 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव लाई थी, लेकिन कोई भी उसे खरीदने के लिए तैयार नहीं हुआ। दरअसल, तब सरकार मैनेजमेंट कंट्रोल अपने पास रखना चाहती थी। लिहाजा, अब सरकार ने इस कंपनी में अपनी 100 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया है।बताया जा रहा है कि कोई भी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, पब्लिक लिमिटेड कंपनी, कॉर्पोरेट बॉडी या फंड भारतीय कानून के मुताबिक एयर इंडिया के लिए बोली लगा सकेंगे। नियमों के मुताबिक विदेशी एयरलाइन या निवेशकों को भारतीय एयरलाइन में 49 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी नहीं मिलेगी। यानी एयर इंडिया का नियंत्रण भारतीय निवेशक के पास ही रहेगा।एयर इंडिया कंपनी की शुरुआत जेआरडी टाटा ने साल 1932 में की थी, तब इसका नाम टाटा एयरलाइन था। देश के पहले लाइसेंसी पायलट जेआरडी टाटा ने 15 अक्टूबर 1932 को कराची से मुंबई की फ्लाइट खुद उड़ाई थी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसका नाम 29 जुलाई 1946 में बदलकर एयर इंडिया कर दिया गया। 8 जून 1948 को एयर इंडिया ने मुंबई से लंदन के लिए एक नियमित सेवा शुरू की और दो साल बाद एयर इंडिया ने नैरोबी के लिए नियमित उड़ानें शुरू कीं।आजादी के बाद साल 1953 में इसका राष्ट्रीयकरण किया गया। घरेलू उड़ानों के लिए इंडियन एयरलाइन्स और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए एअर इंडिया बनाई गई। साल 1960 में पहले बोइंग 707-420 विमानों की शुरुआत के साथ एयर इंडिया ने जेट विमानों का इस्तेमाल करना शुरू किया और दो साल बाद जून 1962 में यह दुनिया की पहली ऑल-जेट एयरलाइन कंपनी बन गई।