मार्च 2020 तक गैर-निजी उपभोग वाली चार क्रोमाइट और सात मैंगनीज खदानें बंद होने जा रही हैं। इस वजह से खनन उद्योग को बड़ी संख्या में नौकरी जाने की आशंका नजर आ रही है। भारतीय खनिज उद्योग महासंघ के अध्यक्ष सुनील दुग्गल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इन खदानों में तकरीबन 90 प्रतिशत श्रमिक अनुबंध के आधार पर हैं। इनमें प्रवासी श्रमिक भी शामिल हैं।हालांकि अभी केवल शुरुआत ही है क्योंकि निजी खनन कंपनियों के कुल 329 पट्टे 31 मार्च, 2020 को समाप्त होने वाले हैं। इनमें 10 राज्यों की 48 सक्रिय और 281 निष्क्रिय खदानें शामिल हैं। इन सक्रिय खदानों में से 50 प्रतिशत ओडिशा में हैं और निष्क्रिय खदानों का सबसे बड़ा हिस्सा गोवा में हैं जहां ऐसी 184 खदान हैं। कर्नाटक में ऐसी करीब 42 खदान हैं।
दुग्गल ने कहा कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि नया मालिक (नीलामी के बाद) सभी श्रमिकों को खदान स्थल पर रोजगार देगा। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि खदानों में कितना प्रौद्योगिक विकास इस्तेमाल किया जाएगा जिससे रोजगार सीमित किया जा सके।फिमी ने कहा कि चूंकि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार का अनुपात 1:10 है, इसलिए 31 मार्च, 2020 तक अनुमानित रूप से 2,50,000 प्रत्यक्ष नौकरी जाने की आशंका हैं। संयुक्त रूप से यह नुकसान 25 लाख या इससे भी ज्यादा तक पहुंचने की आशंका है। इसके अलावा एक बार खनन रुक जाए तो खनन कार्य फिर से शुरू करने में महीनों लग जाते हैं।दुग्गल ने कहा कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में खनन उद्योग का योगदान लगातार कम हो रहा है। वर्तमान में यह केवल तकरीबन 1.53 प्रतिशत ही है, जबकि ऑस्टे्रलिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे खनिज समृद्ध देशों में यह सात से 7.5 प्रतिशत है। देश में 58,638 करोड़ रुपये मूल्य का खनिज उत्पादन होता है, जबकि 4,34,925 करोड़ रुपये मूल्य का खनिज आयात होता है जो लगभग आठ से नौ गुना अधिक है। इसके अलावा भारी निर्यात शुल्क लगाए जाने के कारण भारतीय खनिक कई खनिजों का निर्यात नहीं कर पाते हैं।बुनियादी ढांचे और घरेलू विनिर्माण को ध्यान में रखते हुए भारत ने वर्ष 2030-31 तक 30 करोड़ टन इस्पात उत्पादन लक्ष्य रखा हुआ है। इसका मतलब यह है कि उद्योग को अगले 11 सालों में 14.2 करोड़ टन की मौजूदा क्षमता को 2.11 गुना बढ़ाकर 30 करोड़ टन करने की जरूरत है।
लौह-मिश्र धातु उद्योग में प्रति वर्ष कुल 51.5 लाख टन उत्पादन क्षमता होने के बावजूद लौह-क्रोम उत्पादन 10 लाख टन, लौह-मैंगनीज उत्पादन 5.2 लाख टन और लौह-सिलिकन उत्पादन 0.9 लाख टन के स्तर पर स्थिर रहने के कारण उद्योग को पिछले पांच साल में (2013 से 2018 तक) सुस्ती का सामना करना पड़ा है।विशेषज्ञों ने कहा कि लौह-मिश्र धातु उत्पादन खनन तथा इस्पात और मिश्र धातुओं के बीच निर्माण शृंखला का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है और बिना लौह-मिश्र धातुओं के किसी भी दर्जे वाला इस्पात उत्पादन नहीं किया जाता है। फिमी ने कहा कि अप्रैल 2015 तक भारत के पास 49.6 करोड़ टन मैंगनीज अयस्क और 34.4 करोड़ टन क्रोम अयस्क क्षमता थी। हालांकि फिलहाल देश इन खनिजों का आयात कर रहा है।