केंद्र की मोदी सरकार के 100 दिन के कार्यों का मूल्यांकन उनके संकल्प पत्र में किए गए वादे से करते समय महाभारत में वर्णित यह श्लोक और इसका भावार्थ स्वाभाविक रूप से जेहन में आता है।
वादे हैं वादों का क्या? चुनाव में वादों के पिटारे के रूप में घोषणापत्र जारी किये जाते हैं जिसे संकल्प-पत्र भी कहते हैं। नेता चाहे जिस पार्टी के हों वे चुनाव से पहले बहुत सारे वादे करते हैं, और ज़्यादातर वादे पूरे नहीं होते। दोबारा पीएम बनने का संकल्प लेते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 2022 में भारत की आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होंगे इसलिए पार्टी संकल्प पत्र में दर्ज 75 वादे पूरा करने की दिशा में काम करेगी। मोदी ने कहा था कि यह मैनिफ़ेस्टो वैसे तो 2024 तक के लिए है लेकिन अपने कार्यकाल के बीच में 2022 में हम हिसाब दे सकते हैं। महाभारत के शांतिपर्व में एक श्लोक है- स्वं प्रियं तु परित्यज्य यद् यल्लोकहितं भवेत अर्थात् राजा को अपने प्रिय लगने वाले कार्य की बजाय वही कार्य करना चाहिए जिसमें सबका हित हो। केंद्र की मोदी सरकार के 100 दिन के कार्यों का मूल्यांकन उनके संकल्प पत्र में किए गए वादे से करते समय महाभारत में वर्णित यह श्लोक और इसका भावार्थ स्वाभाविक रूप से जेहन में आता है। मोदी सरकार ने 100 दिन के दौरान तमाम मिथकों को न सिर्फ धता बताया बल्कि उन्हें पूरा करने का जिगर भी दिखाया। अपने 100 दिन के कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी ने कई नामुमकिन को मुमकिन बनाया है। उन सपनों को पूरा किया है जो सपने इस देश ने देखे थे। देश की आवाम ने देखे थे, आरएसएस ने देखे थे, जनसंघ ने और बीजेपी ने देखे थे। मोदी सरकार 2.0 के पूरे किए गए संकल्पों पर इस रिपोर्ट के जरिए डालते हैं नजर।
अनुच्छेद 370 के बारे में भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में लिखा कि "हम जनसंघ के समय से 370 के बारे में अपने दृष्टिकोण को दोहराते हैं। हम धारा 35-ए को ख़त्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
6 अगस्त 2019 को नवनिर्वाचित सरकार ने दिखाया कि कुछ करने का जज्बा और हौसला जब प्रधानमंत्री मोदी जैसा हो तो कुछ भी असंभव नहीं। देश को आजाद हुए 72 साल हो रहे हैं लेकिन अब तक ऐसा जिगर वाला प्रधानमंत्री किसी ने नहीं देखा। जिस विषय को किसी ने छूने की हिम्मत नहीं दिखाई, जिस मसले की तरफ राजनीतिक पार्टियां आंखें मूंदे रहीं। उस मसले की फाइल मोदी ने न सिर्फ खोली बल्कि उसे मुकाम तक पहुंचाया। अपने फैसलों से लगातार चौंकाती रही नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर पर अपने फैसले से विपक्षी दलों समेत हर किसी को हैरान कर दिया। कश्मीर में जिस तरह की हलचल कुछ दिनों तक चली थी, उससे ये अंदाजा तो सबको जरूर था कि सरकार कुछ बड़ा करने वाली है, लेकिन कश्मीर पर एकसाथ सरकार चार बहुत बड़े फैसले करेगी, इसका अंदाजा किसी को नहीं था। खुद विपक्ष के नेता भी स्वीकार कर रहे हैं कि उन्होंने इस 'चौके' की उम्मीद तो कतई नहीं की थी। जम्मू कश्मीर राज्य से संविधान के अनुच्छेद 370 के अलावा सभी खंडों को हटाने और राज्य का विभाजन करने का प्रस्ताव व जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केंद्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव, जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित क्षेत्र की अपनी विधायिका के बारे में प्रस्ताव, लद्दाख बिना विधायिका वाला केंद्र शासित क्षेत्र होने जैसे फैसले से अपने संकल्प पत्र में किए गए वादे को पूरा किया।
भाजपा ने अपने संकल्प प्तर में कहा था कि हम तीन तलाक और निकाह-हलाला जैसी प्रथाओं के उन्मूलन और उन पर रोक लगाने के लिए एक कानून पारित करेंगे।
सारी बहस खत्म, सारे ऐतराज ध्वस्त, सारी शंकाएं निर्मूह। मोदी ने ऐसा मंत्र मारा कि राज्यसभा में विपक्ष की सारी ताकत धरी रह गई और तीन तलाक नाम की कुप्रथा का अंत हो गया। भाजपा के सदन प्रबंधन के सामने बहुमत के बावजूद विपक्ष ताश के पत्तों की तरह धराशायी हो गया। तीन तलाक बिल का विरोध करने वाली कांग्रेस समान सोच वाले दलों को भी अपने साथ जोड़ने में बुरी तरह से नाकाम साबित हुई। राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के बावजूद राजनीति के बदलते हुए माहौल में मोदी सरकार ने अपने बुलंद इरादे के साथ इस बिल को पास कराया।
आतंकवाद से सुरक्षा
घोषणापत्र में किए गए वादे के अनुरूप मोदी सरकार ने आतंकवादियों पर कड़े प्रहार के लिए विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण संशोधन विधेयक (यूएपीए) को मंजूरी दे दी। देश के गृह मंत्री अमित शाह ने भी साफ किया कि आतंकवाद और उसका समर्थन करने वाले को बख्शा नहीं जाएगा। इस बिल में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने वाले, उनकी मदद करने वाले, उन्हें पैसे मुहैया कराने वाले और उनका प्रचार करने वालों के खिलाफ सख्त प्रावधान किए गए हैं। आतंकी गतिविधियों में शामिल व्यक्ति विशेष को भी आतंकवादी करार देने और उस पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित इस कानून के तहत दहशतगर्द मौलाना मसूद अजहर, दाऊद इब्राहिम, जाकिर-उर-रहमान लखवी और हाफिज सईद को आतंकवादी घोषित किया।
नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजंस (एनआरसी) को प्राथमिकता के आधार पर लागू करना।
नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजंस आसान भाषा में कहें तो एनआरसी वो प्रक्रिया है जिसके जरिए देश में गैर-कानूनी तौर पर रह रहे विदेशी व्यक्तियों को खोजने की कोशिश की जाती है। देश के गृह मंत्री अमित शाह ने ऐसे अवैध लोगों को देश से बाहर करने का वादा किया है। 31 दिसंबर 2017 को NRC का पहला ड्राफ्ट प्रकाशित हुआ। इसमें इसमें 3.29 करोड़ लोगों में से केवल 1.9 करोड़ को ही भारत का वैध नागरिक माना गया। 30 जुलाई 2018 को असम सरकार ने दूसरा ड्राफ्ट जारी किया। इसमें कुल 2.89 करोड़ लोगों को वैध नागरिक माना गया। इस तरह से कुल लगभग 40 लाख लोग NRC की सूची से बाहर हो गए। 26 जून 2019 को एक और लिस्ट जारी की गई। इस लिस्ट के आने के बाद NRC से लगभग 1 लाख 2 हजार लोग और भी बाहर हो गए। इसके बाद NRC से बाहर हुए लोगों की तादाद 41 लाख 10 हजार हो गई। आखिरकार 31 अगस्त, 2019 को एनआरसी की आखिरी लिस्ट जारी हुई। इस लिस्ट के मुताबिक 19 लाख से ज्यादा लोग NRC की सूची से बाहर हैं। जैसे ही असम के आंकड़े सामने आए देश के कई राज्यों में NRC की मांग होने लगी।
भाजपा के संकल्प पत्र में 'सुशासन' शीर्षक वाले अध्याय में भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के लिए प्रयास किए जाने की बात कही गई है।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में सरकारी विभागों की सफाई यानी 'नाकारा अफसरों' को निकालने और भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने की दिशा में प्रयासरत दिख रही है। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड ने एक बार फिर 22 सीनियर अफसरों को जबरन रिटायर करने का फैसला लिया है। ये सभी अफसर टैक्स डिपार्टमेंट के हैं। इससे पहले भी टैक्स विभाग के ही 12 वरिष्ठ अफसरों को जबरन रिटायर कर दिया गया था। जून महीने में नियम 56 के तहत रिटायर किए गए सभी अधिकारी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में चीफ कमिश्नर, प्रिंसिपल कमिश्नर्स और कमिश्नर जैसे पदों पर तैनात थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक इनमें से कई अफसरों पर कथित तौर पर भ्रष्टाचार, अवैध और बेहिसाब संपत्ति जैसे गंभीर आरोप थे।