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(घोर कलयुग की दस्तक) *नैतिक पतन के चलते खतरे में इंसानी रिश्ते।*

समाज में कितना पतन बाकी है?  यह सुनकर दिल दहल जाता है कि कोई बेटा अपने ही माता-पिता की इतनी निर्ममता से हत्या कर सकता है? महिला ने जेठ के साथ मिलकर अपने दो वर्ष के बेटे को मरवा दिया। पत्नी ने प्रेमी सँग मिलकर मर्चेंट नेवी मे अफसर पति के टुकड़े-टुकड़े किये। पिता ने नौकर से अपने बेटे की हत्या करवायी। माँ,बाप,भाई, दोस्त,पार्टनर को मारने की खबरें आम हैं। ऐसे अपराध यह दिखाते हैं कि समाज में मानसिक संतुलन, नैतिकता और पारिवारिक मूल्यों में कितनी गिरावट आ चुकी है। अपराध और नैतिक पतन की ये घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि कहीं न कहीं हमारी सामाजिक संरचना, पारिवारिक मूल्य और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर संकट है। लेकिन यह भी ध्यान देने की बात है कि नकारात्मक घटनाएँ समाचारों में ज़्यादा दिखाई देती हैं, क्योंकि वे लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं। समाज में आज भी बहुत से लोग हैं जो प्रेम, सहयोग और नैतिकता से भरे हुए हैं। हमें ज़रूरत है कि हम अच्छाई को भी उतना ही महत्त्व दें और समाज को बेहतर बनाने की दिशा में काम करें। इस पतन के कारणों को समझकर समाधान निकालना ज़रूरी है—परिवारों में संवाद बढ़ाना, मानसिक स्वास्थ...
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सरधना में आज ईद का त्योहार पूरे हर्षोल्लास और उमंग के साथ मनाया जा रहा है।

 सरधना में आज ईद का त्योहार पूरे हर्षोल्लास और उमंग के साथ मनाया जा रहा है। सुबह से ही मस्जिदों और ईदगाहों में नमाज अदा करने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ी। माह-ए-रमजान के 29 दिनों तक रोजा रखने के बाद मुस्लिम समुदाय ने बड़े उत्साह के साथ इस खास मौके को मनाया।वहीं सरधना चेयरपर्सन पुत्र शाहवेज अंसारी ने कहा कि ईद का त्योहार प्यार और भाईचारे के नाम, ये खुशी का दिन सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि मोहब्बत और इंसानियत का पैग़ाम है। चाहे कोई भी मज़हब हो – *हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई,* सब मिलकर इस दिन को मनाएं, क्योंकि असली खुशी वही है जो सबके साथ बांटी जाए। साथ ही शाहवेज अंसारी चेयरपर्सन पुत्र ने कहा कि इस ईद पर दिल उदास भी है… ग़ाज़ा के बेगुनाह लोग तकलीफ में हैं। जहां हम अपने अपनों के साथ खुश हैं, वहीं वहां कई लोग अपने घर और परिवार खो चुके हैं। इस खुशी के मौके पर उन्हें भूलना मुमकिन नहीं। आइए, उनके लिए अमन और इंसाफ़ की दुआ करें। इस ईद पर हम कसम खाएं कि नफरतें नहीं, मोहब्बत फैलाएंगे। गरीबों की मदद करेंगे, जरूरतमंदों का सहारा बनेंगे और एक-दूसरे से इंसानियत के नाते मोहब्बत करेंगे। ईद की नमाज क...

पशुपालकों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर असर, हरियाणा के इतिहास में सबसे लंबे कर्मचारी आंदोलनों में से एक।

 डिप्लोमा वेटरनरी एसोसिएशन हरियाणा: हज़ारों दिनों से संघर्ष जारी, कब मिलेगा न्याय? हरियाणा पशुपालन विभाग में महानिदेशक पद पर आईएएस अधिकारी की नियुक्ति एवं VLDA कर्मचारियों की माननीय मुख्यमंत्री महोदय द्वारा स्वीकृत मांगों की अधिसूचना जारी करवाने हेतु Diploma Veterinary Association Haryana 633 द्वारा 1015 दिनों से आंदोलन जारी है। बिजेंद्र सिंह बैनीवाल, राज्य प्रधान एवं रामफल राहड़, महासचिव, डिप्लोमा वैटरनरी एसोसिएशन हरियाणा का कहना है कि जब तक हरियाणा सरकार वीएलडीए कर्मचारियों की मांंगों की अधिसूचना जारी नहीं करती तब तक यह आन्दोलन जारी रहेगा। उनकी मांंगें न्यायसंगत हैं और जनता के हित में हैं। -ऋषि प्रकाश कौशिक, गुरुग्राम।  हरियाणा के पशुपालन और वेटरनरी सेवाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले Veterinary Livestock Development Assistants (VLDA) पिछले 1016 दिनों से अपनी जायज मांगों को लेकर संघर्षरत हैं। पंचकूला के सेक्टर-5 में धरने पर बैठे ये कर्मचारी अपनी सेवा शर्तों में संशोधन, पदनाम परिवर्तन और बेहतर वेतनमान की मांग कर रहे हैं। हालांकि, अभी तक सरकार की ओर से कोई ठोस समाधान नहीं...

भगत सिंह: "इंकलाब से आज तक" "क्रांति बंदूक की गोली से नहीं, बल्कि विचारों की ताकत से आती है।"

 भगत सिंह का जीवन केवल एक क्रांतिकारी गाथा नहीं, बल्कि एक विचारधारा का प्रतीक है। उनकी शहादत से पहले उनके विचारों की ताकत थी, और उनकी शहादत के बाद भी उनका प्रभाव अमर है। आज जब हम आर्थिक असमानता, सांप्रदायिकता और भ्रष्टाचार से जूझ रहे हैं, तो भगत सिंह के विचार पहले से भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं। उनका सपना केवल ब्रिटिश शासन से मुक्ति तक सीमित नहीं था; वे एक ऐसे भारत की कल्पना कर रहे थे, जहाँ सबको समान अधिकार और अवसर मिले। --डॉ. सत्यवान सौरभ 23 मार्च 1931—लाहौर की जेल में तीन नौजवानों के कदमों की आहट सुनाई देती है। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव मुस्कुराते हुए फांसीघर की ओर बढ़ रहे हैं। मौत का कोई खौफ नहीं, बल्कि आंखों में एक चमक है—क्रांति की, बदलाव की। वे जानते हैं कि उनके विचार कभी नहीं मरेंगे। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। लेकिन क्या सच में एक क्रांतिकारी मर सकता है? उनके विचार, उनकी सोच और उनकी प्रेरणा आज भी जीवंत हैं। वे केवल ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नहीं लड़े, बल्कि एक ऐसे भारत के लिए संघर्ष किया, जो समानता, न्याय और स्वतंत्रता पर आधारित हो। एक...

शादी के बाद करियर: उड़ान या उलझन?

परिवारों को यह समझना होगा कि शादी का मतलब महिलाओं के करियर का अंत नहीं होता। पुरुषों को घर और बच्चों की जिम्मेदारी में बराबर भागीदारी निभानी चाहिए।  कंपनियों को महिलाओं के लिए अधिक फ्लेक्सिबल जॉब ऑप्शंस देने चाहिए। करियर और शादी को विरोधी ध्रुवों की तरह देखने की बजाय उन्हें साथ ले चलने की जरूरत है। पुरुषों को भी घर और बच्चों की जिम्मेदारी में बराबर भागीदार बनना चाहिए। कंपनियों को फ्लेक्सिबल वर्किंग ऑप्शंस देने चाहिए, ताकि महिलाएँ आसानी से दोनों भूमिकाएँ निभा सकें। -प्रियंका सौरभ सोचिए, एक लड़की ने अपने करियर के लिए दिन-रात मेहनत की, डिग्रियाँ लीं, अनुभव जुटाया और फिर... शादी हुई! और शादी के बाद? अक्सर वही होता है, जो पीढ़ियों से होता आया है—करियर या तो ठहर जाता है या धीरे-धीरे गुमनाम हो जाता है। हमारे समाज में शादी को महिलाओं के जीवन का "मील का पत्थर" माना जाता है। लेकिन सवाल यह है कि यह मील का पत्थर करियर की सड़क को आगे बढ़ाने का काम करता है या उस पर एक बड़ा ब्रेक लगा देता है? करियर या शादी: क्या वाकई कोई चुनाव होना चाहिए? हमारे समाज में शादी को महिलाओं के जीवन का "टर्न...

चिंताजनक है सरकारी अधिकारियों का दुरुपयोग।

सरकारी अधिकारियों के साथ बढ़ता दुर्व्यवहार एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनता जा रहा है, क्योंकि वे अपने कर्तव्यों को निष्पक्ष और बिना किसी पक्षपात के निभाने का प्रयास करते हैं। कई सिविल सेवकों को अक्सर अपने विकल्पों से असंतुष्ट व्यक्तियों या समूहों से धमकियों, उत्पीड़न और अनुचित दबाव का सामना करना पड़ता है। यह परेशान करने वाली प्रवृत्ति शासन की अखंडता को नष्ट कर सकती है, नैतिक व्यवहार को बाधित कर सकती है और सार्वजनिक संस्थानों को कमजोर कर सकती है। इस समस्या से निपटने के लिए, नैतिक मानकों को बनाए रखना, कानूनी सुरक्षा प्रदान करना और यह सुनिश्चित करने के लिए संस्थागत समर्थन प्रदान करना आवश्यक है कि अधिकारी प्रतिशोध के डर के बिना अपनी भूमिका निभा सकें। सरकारों को पारदर्शिता, जवाबदेही और कानून के शासन के प्रति सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए, साथ ही जनता को लोकतंत्र और न्याय को बनाए रखने में सिविल सेवकों की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में शिक्षित करना चाहिए। -प्रियंका सौरभ कानून प्रवर्तन, उद्योग विनियमन और चुनाव निरीक्षण के लिए ज़िम्मेदार सरकारी अधिकारियों को लगातार धमकियों, उत्पीड़न और विभिन...

महिला पुरस्कारों की गरिमा और निष्पक्षता पर उठते प्रश्न

 हमारे तेज़ी से बदलते सामाजिक और राजनीतिक माहौल में, महिला पुरस्कारों का महत्त्व और आवश्यकता जांच के दायरे में आ रही है। हाल ही हरियाणा में महिला दिवस पर विवादित महिला का मुख्यमंत्री से सम्मान मामले ने गहरे प्रश्न सबके सामने रख दिए है। आज के सांस्कृतिक परिवेश में, जहाँ प्रतिनिधित्व को अक्सर प्राथमिकता दी जाती है, कुछ पुरस्कारों ने सच्ची उपलब्धियों से ध्यान हटाकर केवल दिखावे पर ध्यान केंद्रित किया है। महिला पुरस्कारों को पुराने प्रतीक या दिखावटीपन के उपकरण नहीं बनने चाहिए। उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की विशिष्ट चुनौतियों और सफलताओं पर प्रकाश डालना जारी रखना चाहिए। महिलाओं के पुरस्कारों के लिए, संस्थानों को इन विशिष्ट सम्मानों की प्रतिष्ठा बढ़ाने का लक्ष्य रखना चाहिए। महिलाओं की उपलब्धियाँ समर्पित स्वीकृति की हकदार हैं-एक बाद की सोच के रूप में नहीं, बल्कि उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए एक उचित श्रद्धांजलि के रूप में। -प्रियंका सौरभ हाल ही हरियाणा में महिला दिवस पर विवादित महिला का मुख्यमंत्री से सम्मान मामले ने गहरे प्रश्न सबके सामने रख दिए है। कई वर्षों से, महिला पुरस्कार...

देश भर में अश्लीलता फैलाने वाले कलाकारों पर लगे बैन।

लोककला के नाम पर अश्लीलता का तड़का, ग़लत दृश्य दिखाना, अश्लील नाटकों-गीतों का मंचन समाज से खिलवाड़।   एक ओर जहाँ कई लोग संस्कृति को प्रमोट करने के लिए अपना करियर, अपनी मेहनत और अपना सब कुछ दांव पर लगा रहे हैं तो कोई हमारी संस्कृति को इस तरह से बदनाम कर उसे अश्लील गानों के साथ परोस रहे हैं। अब आप ही सोचिए की अगर हमें ऐसी अश्लीलता ही दिखानी है या देखनी है तो आने वाले समय पर हम संस्कृति के नाम पर क्या करेंगे और क्या-क्या होगा? कला का सहारा लेकर कुछ लोग कम समय में चर्चित होना चाहते हैं। मशहूर होना है तो अपने हुनर से हों। चर्चा में रहने के लिए कला और अपनी संस्कृति से खिलवाड़ करना एकदम ग़लत है। ऐसे कलाकारों को सजा होनी चाहिए। अश्लीलता फैलाने के लिए कुछ लोग कला की आड़ ले रहे हैं। अश्लील नाटक, गीतों का मंचन करने वाले कलाकार ही नहीं बल्कि वे आयोजक और संयोजक भी दोषी है, जो ऐसी प्रस्तुतियों को बढ़ावा देते हैं।  इन गीतों का श्रवण विशेषकर युवा वर्ग आनंदपूर्वक करता है। कई अवसरों पर शादी-व्याह आदि उत्सवों में कुछ बुज़ुर्ग जन भी इस तरह के गीतों पर जमकर ठुमके लगाते हैं। सांस्कृतिक परम्परा पर चि...

प्रसिद्धि की बैसाखी बनता साहित्य में चौर्यकर्म

हरियाणा के एक लेखक द्वारा राज्य गान के रूप में एक गीत के चयन को लेकर हाल ही में एक बहस छिड़ी है, जिस पर साहित्यिक चोरी का आरोप लगाया गया है। अन्य लेखकों ने इस मामले पर अपनी चिंता व्यक्त की है और इसे राज्य के मुख्यमंत्री के ध्यान में लाया है। इस स्थिति ने साहित्यिक चोरी के साथ-साथ आज साहित्य के सामने आने वाले अवसरों और चुनौतियों के बारे में नए सिरे से बातचीत शुरू कर दी है। साहित्यिक चोरी और कॉपी-पेस्ट का मुद्दा हिंदी साहित्य में भी बढ़ रहा है, खासकर डिजिटल युग में, जहां लेख, कविताएं और कहानियां ऑनलाइन आसानी से उपलब्ध हैं। किसी अन्य लेखक के काम को बिना उचित श्रेय दिए या केवल मामूली बदलाव करके कॉपी करना साहित्यिक चोरी का एक स्पष्ट उदाहरण है। यह प्रवृत्ति न केवल लेखकों के अधिकारों का उल्लंघन करती है बल्कि मौलिकता और रचनात्मकता को भी कमजोर करती है। -डॉ. सत्यवान सौरभ साहित्यिक चोरी साहित्यिक क्षेत्र में एक बड़ी चुनौती बन गई है, जहाँ एक लेखक के विचारों, शब्दों या रचनाओं पर दूसरे लेखक द्वारा उचित स्वीकृति के बिना दावा किया जाता है। यह कृत्य न केवल साहित्यिक नैतिकता का उल्लंघन करता है बल्कि सच्...

दुर्लभ बीमारियों के बोझ तले कहराते मरीज।

 दुर्लभ बीमारी एक स्वास्थ्य समस्या है जो कभी-कभार होती है और सीमित संख्या में व्यक्तियों को प्रभावित करती है। इस श्रेणी में आनुवंशिक विकार, असामान्य कैंसर, संक्रामक रोग और अपक्षयी स्थितियाँ शामिल हैं। वैश्विक स्तर पर 7, 000 से अधिक मान्यता प्राप्त बीमारियों में से केवल 5% के लिए ही प्रभावी उपचार उपलब्ध हैं। भारत में, लगभग 450 पहचानी गई दुर्लभ बीमारियों में से आधे से भी कम का इलाज़ किया जा सकता है। अधिकांश रोगियों को अक्सर केवल बुनियादी देखभाल ही मिलती है जो लक्षणों को प्रबंधित करने में मदद करती है। दुर्लभ बीमारियों के कुछ उपचारों में अत्यधिक महंगी दवाइयाँ और सहायक उपचार शामिल होते हैं, जिससे वहनीयता एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय बन जाती है। प्रत्येक स्थिति से प्रभावित रोगियों की कम संख्या के कारण दवा कंपनियाँ अक्सर दुर्लभ बीमारियों को एक व्यवहार्य बाज़ार के रूप में अनदेखा कर देती हैं। परिणामस्वरूप, इन बीमारियों को 'अनाथ रोग' के रूप में लेबल किया जाता है और सम्बंधित दवाओं को 'अनाथ दवाएँ' कहा जाता है। भारत में, दुर्लभ बीमारी का निदान करने में आम तौर पर औसतन सात साल लगते है...

नंगापन और फूहड़ता परोसती सोशल मीडिया

मॉडर्न परिवेश में जीवन का चरमसुख अब फॉलोअर्स पाने और कमेंट आने पर निर्भर हो गया है। फ़ेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर नग्न अवस्था में तस्वीरें शेयर कर आज लड़कियाँ लाइक कमेंट पाकर ख़ुद को ऐसे अनुगृहित करती दिखाई देती है; मानो जीवन की सबसे अहम और ज़रूरी ऊंचाई को उन्होंने पा लिया हो। इस नग्नता को हम आधुनिकता के इस दौर में न्यू फैशन कहते हैं। सोशल मीडिया पर फैशन की उबाल आई तो सोशल नेटवर्क पर युवा पीढ़ी ने ख़ुद को खूबसूरत युवतियों से पीछे पाया, फिर क्या युवकों ने ख़ुद की नग्नता का नंगा नाच शुरू किया कहा मैं पीछे कैसे? युवा अपने यौवन को दिखाते घूम रहे हैं मैं किसी से कम नहीं। पहले के ज़माने में बड़े बुज़ुर्ग इस तरह की हरकतों पर नकेल कसते थे। खैर ज़माना आधुनिक है इस लिए समाज इसे स्वीकारता और आनंदित होता है। ऐसे बिगड़ैल यूट्यूबर के इंटरव्यूज होना और भी अचरज की बात है। सोशल मीडिया पर आजकल जो ये फॉलोवर बढ़ाने के लिए जो नग्नता परोसी जा रही है। क्या उसमें परोसने वाले ही दोषी हैं? क्या उसको लाइक और शेयर करने वाले दोषी नहीं हैं? मेरे हिसाब से तो वह ज़्यादा दोषी हैं। अगर हम ऐसी पोस्ट या वीडियो को लाइक शेयर कर...

रुपये (₹) के चिह्न को लेकर विवाद: भाषा का सम्मान या राजनीति का हथकंडा?

केवल वाद विवाद से हल नहीं निकलेगा। संविधान में ये कानून होना चाहिए कि कोई भी राज्य या राज्य सरकार राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग की जाने वाली या मानी जाने वाली वस्तुओं पर अपने से निजी परिवर्तन नहीं कर सकती। ऐसा किया जाना देश द्रोह माना जाए और ज़िम्मेदार व्यक्ति को पदच्युत किया जाए। रुपये (₹) के चिह्न को लेकर विवाद सिर्फ़ भाषा और सांस्कृतिक पहचान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक बड़ा राजनीतिक खेल भी दिखाई देता है। क्षेत्रीय दल, विशेष रूप से द्रविड़ मुनेत्र कषगम, इस मुद्दे को उठाकर न केवल तमिल अस्मिता को मज़बूत करने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि केंद्र सरकार की भाषा नीति और हिन्दी वर्चस्व के खिलाफ अपने पारंपरिक रुख को भी आगे बढ़ा रहे हैं। -डॉ सत्यवान सौरभ द्रविड़ मुनेत्र कषगम पहले भी हिन्दी थोपने के विरोध में और तमिल भाषा की पहचान को बचाने के लिए मुखर रही है। अब रुपये के चिह्न (₹) को लेकर द्रविड़ मुनेत्र कषगम ने आपत्ति जताई है। पार्टी का कहना है कि इस चिह्न में भारतीय संस्कृति और विशेष रूप से दक्षिण भारतीय पहचान को उचित स्थान नहीं दिया गया है। भारतीय मुद्रा के चिह्न (₹) को लेकर द्रविड़ मुनेत्र...

लुप्त होती हरियाणा की अनमोल विरासत रागनी कला

 हरियाणवी लोकसंस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण अंग रागनी आज विलुप्ति के कगार पर है। मनोरंजन के आधुनिक साधनों के आगमन और बदलते सामाजिक परिवेश के कारण यह कला पिछड़ती जा रही है। यदि समय रहते इसके संरक्षण के प्रयास नहीं किए गए, तो आने वाली पीढ़ियों को यह विरासत केवल किताबों में ही देखने को मिलेगी। रागनी के लुप्त होने का मुख्य कारण आधुनिक जीवनशैली, व्यवसायिक कमी और नई पीढ़ी की बदलती रुचि है। इसे बचाने के लिए डिजिटल प्लेटफार्मों पर प्रचार, शिक्षा में लोककला को शामिल करना और लोक कलाकारों को आर्थिक सहयोग देना ज़रूरी है। यदि सही क़दम नहीं उठाए गए, तो यह अनमोल धरोहर धीरे-धीरे गुम हो जाएगी। -डॉ. सत्यवान सौरभ हरियाणा की लोकसंस्कृति में रागनी एक महत्त्वपूर्ण कला है, जो समय के साथ धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। यह न केवल मनोरंजन का माध्यम रही है, बल्कि सामाजिक संदेश देने, वीर रस जगाने और लोक इतिहास को संजोने का एक प्रभावशाली ज़रिया भी रही है। हरियाणा की रागनी न केवल मनोरंजन का एक सशक्त माध्यम रही है, बल्कि समाज सुधार की दिशा में भी इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। यह लोककला सिर्फ़ संगीत नहीं, बल्कि ए...

बूँद-बूँद में सीख ●●●

  इस धरती पर हैं बहुत, पानी के भंडार। पीने को फिर भी नहीं, बहुत बड़ी है मार॥ ●●● जल से जीवन है जुड़ा, बूँद-बूँद में सीख। नहीं बचा तो मानिये, मच जाएगी चीख॥ ●●● अगर बचानी ज़िंदगी, करें आज संकल्प। जल का जग में है नहीं, कोई और विकल्प॥ ●●● धूप नहीं, छाया नहीं, सूखे जल भंडार। साँसे गिरवी हो गई, हवा बिके बाज़ार॥ ●●● आये दिन होता यहाँ, पानी ख़र्च फिजूल। बंद सांस को ख़ुद करें, बहुत बड़ी है भूल॥ ●●● जो भी मानव ख़ुद कभी, करता जल का ह्रास। अपने हाथों आप ही, तोड़े जीवन आस। ●●● हत्या से बढ़कर हुई, व्यर्थ गिरी जल बूँद। बिन पानी के कल हमीं, आँखें ना ले मूँद॥ ●●● नदियाँ सब करती रहें, हरा-भरा संसार। होगा ऐसा ही तभी, जल से हो जब प्यार॥ ●●● पानी से ही चहकते, घर-आँगन-खलिहान। धरती लगती है सदा, हमको स्वर्ग समान॥ ●●● बाग़, बगीचे, खेत हों, घर या सभी उद्योग। जीव-जंतु या देव को, जल बिन कैसा भोग॥ ●●● पानी है तो पास है, सब कुछ तेरे पास। धन-दौलत से कब भला, मिट पाएगी प्यास॥ ●●● जल से धरती है बची, जल से है आकाश। जल से ही जीवन जुड़ा, सबका है विश्वास॥ ●●● अगर बचानी ज़िंदगी, करें आज संकल्प। जल का जग में है नहीं, कोई और विकल्प...

(जल दिवस: 22 मार्च विशेष) अतीत की गोद में सोए तालाब और बावड़ियाँ: बस पानी ही नहीं, कहानियों का खजाना

 अगर हम तालाबों और बावड़ियों को सिर्फ़ पानी जमा करने की जगह समझते हैं, तो शायद हम उनके साथ न्याय नहीं कर रहे। ये सिर्फ़ जल-स्रोत नहीं, बल्कि सदियों की कहानियों, रहस्यों, परंपराओं और लोककथाओं के ज़िंदा गवाह हैं। पुराने तालाब और बावड़ियाँ इतिहास की किताब के वह पन्ने हैं, जिन पर समय की बूंदें टपकी हैं। अब जब हम पानी के संकट से जूझ रहे हैं, तब इन प्राचीन जल स्रोतों की अहमियत और भी बढ़ जाती है। आधुनिक टैंकर और बोरवेल के भरोसे रहने की बजाय अगर हम फिर से बावड़ियों और तालाबों को ज़िंदा करें, तो शायद आने वाली पीढ़ियाँ भी हमारी तारीफ़ करेंगी (और शायद तालाबों के किनारे बैठकर अपनी नई कहानियाँ रचेंगी) । तालाब और बावड़ियाँ हमारे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिदृश्य का अभिन्न अंग रही हैं। वे न केवल जल-संग्रहण के साधन थे, बल्कि समाज के सामूहिक जीवन, कला, स्थापत्य और आध्यात्मिक गतिविधियों से भी जुड़े हुए थे। आज के दौर में जल संकट एक गंभीर समस्या बन चुका है। जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित शहरीकरण और भूजल के अत्यधिक दोहन ने पानी की उपलब्धता को प्रभावित किया है। ऐसे में प्राचीन जल संरचनाओं, जैसे तालाब और बावड...

चिड़िया रानी।

  सुबह-सुबह नन्ही चिड़िया, आँगन में जब आती है। फुदक-फुदक कर चूं-चू करती,  मीठी लोरी रोज सुनाती है।।  चिड़िया फुर्र फुर्र उड़ती है,  चोंच से दाने चुगती है। बच्चों को है देती खाना,  सबसे पहले उठ जाती है।।  छज्जा खिड़की ढूंढें आला, कहाँ घोंसला जाये डाला।  तिनका थामे चिमटी चोंच में,  सपनों का नीड सजाती है।।  उम्मीदों के पंख पसारकर,  नील गगन को  उड़ पार कर।  जीवन की कठिनाई झेलती,  अपना हर धर्म निभाती है।।  उठो सवेरे और करो श्रम, प्रगति इसी से आती है। बच्चों प्यारी चिड़िया रानी, हमको यह सिखलाती है।। -डॉ.सत्यवान सौरभ

समाज में नैतिक पतन: घोर कलयुग की दस्तक

समाज मे कितना पतन बाकी है?  यह सुनकर दिल दहल जाता है कि कोई बेटा अपने ही माता-पिता की इतनी निर्ममता से हत्या कर सकता है। महिला ने जेठ के साथ मिलकर अपने दो वर्ष के बेटे को मरवा दिया। पत्नी ने प्रेमी सँग मिलकर मर्चेंट नेवी मे अफसर पति के टुकड़े-टुकड़े किये। पिता ने नौकर से अपने बेटे की हत्या करवायी। माँ,बाप, भाई, दोस्त, पार्टनर को मारने की खबरें आम हैं। ऐसे अपराध यह दिखाते हैं कि समाज में मानसिक संतुलन, नैतिकता और पारिवारिक मूल्यों में कितनी गिरावट आ चुकी है। अपराध और नैतिक पतन की ये घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि कहीं न कहीं हमारी सामाजिक संरचना, पारिवारिक मूल्य और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर संकट है। लेकिन यह भी ध्यान देने की बात है कि नकारात्मक घटनाएँ समाचारों में ज़्यादा दिखाई देती हैं, क्योंकि वे लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं। समाज में आज भी बहुत से लोग हैं जो प्रेम, सहयोग और नैतिकता से भरे हुए हैं। हमें ज़रूरत है कि हम अच्छाई को भी उतना ही महत्त्व दें और समाज को बेहतर बनाने की दिशा में काम करें। इस पतन के कारणों को समझकर समाधान निकालना ज़रूरी है—परिवारों में संवाद बढ़ाना, मानसिक स्वास्...

खाद्य पदार्थों में कीटनाशक अवशेषों की बढ़ती समस्या

भारत में जाँचे गए 50% से अधिक खाद्य नमूनों में कीटनाशक अवशेष पाए गए हैं। कुछ खाद्य पदार्थ, जैसे सब्ज़ियाँ, फल, अनाज, दालें और मसाले, विनियामक निकायों द्वारा निर्धारित अधिकतम अवशेष सीमा (MRL) से अधिक पाए गए हैं। कीटनाशकों का उपयोग फसलों पर कीटों, कवक और खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है और उन्हें पानी, मिट्टी और हवा के माध्यम से ले जाया जा सकता है, जिससे आस-पास की फसलें प्रभावित होती हैं। इसके अतिरिक्त, भंडारण और परिवहन के दौरान खराब होने से बचाने के लिए कुछ कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। सेब, अंगूर, स्ट्रॉबेरी, पालक, टमाटर और आलू जैसे आम फलों और सब्जियों में अक्सर कीटनाशकों के महत्त्वपूर्ण अवशेष होते हैं। चावल, गेहूँ, दाल और छोले जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों में भी हानिकारक कीटनाशक हो सकते हैं। -डॉ. सत्यवान सौरभ खाद्य पदार्थों में कीटनाशक अवशेष कीटनाशकों की छोटी मात्रा होती है जो फसलों पर इस्तेमाल किए जाने के बाद खाद्य पदार्थों पर या उनके भीतर रह जाती है। ये अवशेष संभावित रूप से स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकते हैं, जो विशिष्ट कीटनाशक और उसकी सांद्रता पर निर्भर करता है। भारत व...